Monday, December 24, 2007

मैं और मेरा मोबाइल

खोया मेरा मोबाइल तो लगा खोया मेरा जहाँ ,
जाने कौन ले गया उसे अकेला,

कैसे बताये क्या कुछ नही था वोह मेरा ।
वोह हसीं यादें, वह यादो में बसे हसीं पल,
वोह हसीं लम्हे, वोह लम्हों मी थिरक्थे दो मन,

कैसे बताये क्या कुछ नही था वोह मेरा ।
वोह सुबह सवेरे का उस्ज्का अलार्म, वोह प्यारा सा " उठो बिट्टू बेटा सुबह हो गयी" मेसेज,
वोह दिन भर का मुसिक प्लेयर, वोह रात का आधी बटेरी का फ़ोन,

कैसे बताये क्या कुछ नही था वोह मेरा ।
वोह हसीं लम्हों मे खीची अनगिनत तस्वीरें, वोह यादो को ताज़ा करते अनगिनत रेकोरदिंग्स,
वोह दिन भर के बदलते मोबाइल थीम्स, वोह टीम पास के मोबाइल गमेस,

कैसे बताये क्या कुछ नही था वोह मेरा ।
वोह नए रिंग टोन पर दोस्तो का कौतुहल, वोह मीतींग मे SMS टोन बज़ने पर मचती हलचल ,
वोह बोर क्लास को देता नया आयाम, वोह लम्बे सफर में देता आराम,
कैसे बताये क्या कुछ नही था वोह मेरा ।

वह सुनाये कीसे यह हाल अपना, वोह जो चला गया है मेरा एक सपना,
वोह दोस्त वोह हमदम मेरा, वोह हमनवा वोह हमराज़ मेरा

कैसे बताये क्या कुछ नही था वोह मेरा ।

मैं और मेरा मोबाइल,
कितनी यादें बसी है मन में.

1 comment:

Gary said...

u haven't posted ne thing on your blog for over one year.......